गांधी जयंती

सत्य-अहिंसा के पुजारी, बापू तुमने दुनिया संवारी..’

 

 गांधी जयंती

आज से करीब 155 साल पहले गुजरात के एक छोटे से शहर पोरबंदर में जब एक बच्चे का जन्म हुआ, तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि उसके नाम के साथ हमेशा के लिए ‘महात्मा’ जुड़ जाएगा। किसी ने ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वो बच्चा बड़ा होकर ‘राष्ट्रपिता’ कहलाएगा। कि पूरी दुनिया उसे प्यार से ‘बापू’ कहकर बुलाएगी।

 

आज हम यहां सिर्फ एक व्यक्ति की जयंती मनाने के लिए इकट्ठा नहीं हुए हैं। हर साल देश 2 अक्टूबर को सिर्फ एक शख्सियत को ही याद नहीं करता है। मोहनदास करमचंद गांधी महज एक शख्सियत से कहीं ज्यादा हैं। गांधी सिर्फ एक नाम नहीं, अपने आप में एक पूरी विचारधारा है। ऐसी विचारधारा जो पूरी दुनिया में शांति स्थापित करने की ताकत रखती है।

महात्मा गांधी ने भारत की आजादी के अलावा और समाज में अहिंसा, लोगों को सत्य की राह दिखाने, समाज में हाशिए पर कर दिए गए लोगों को सम्मानजनक जीवन जीने का हक दिलाने में भी बड़ी भूमिका निभाई। ये दिन हमें गांधी जी के विचारों और उनके द्वारा किए गए संघर्षों को याद करने का अवसर देता है।

गांधी जी सत्य, अहिंसा और सादा जीवन जीने में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि किसी भी समस्या को हल करने के लिए हिंसा का सहारा लेना गलत है। अपनी इसी विचारधारा के साथ उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई भी लड़ी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सविनय अवज्ञा आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, दांडी यात्रा जैसे अहिंसात्मक आंदोलन चलाए। गांधी जी का दांडी मार्च (नमक आंदोलन) तो पूरी दुनिया के कई देशों के लिए अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ सत्याग्रह की मिसाल बना। जिसने बड़ी से बड़ी सत्ता को झुकने पर मजबूर कर दिया।

गांधी जी केवल स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे। वो एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने छुआछूत, जातिवाद और महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। बापू कहते थे कि किसी भी समाज का विकास तभी संभव है, जब उसमें हर किसी को समान अधिकार मिले।

हर गांधी जयंती हमें याद दिलाती है कि गांधी जी के विचारों और उनके दिखाए गए मार्ग को अपनाकर हम क्या कुछ हासिल कर सकते हैं। गांधी के सिद्धांत अपनाकर हम न केवल एक बेहतर व्यक्ति बन सकते हैं, बल्कि अपने समाज और देश को भी आगे बढ़ा सकते हैं। कैसे छोटी-छोटी कोशिशों से बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं। बापू को सच्ची श्रद्धांजलि तो यही होगी कि हम उनके आदर्शों को आत्मसात करें।

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