मानव-मूत्र से फास्फोरस
हैनिंग ब्रांड नामक एक जर्मन कीमियागर थे। वर्ष 1669 में वे सस्ते पदार्थों से सोना बनाने का प्रयत्न कर रहे थे। उन्होंने थोड़े से मानव-मूत्र को रेत के साथ मिलाया तथा उसे एक भट्टी में गरम किया। गरम किए जाने के बाद इस मिश्रण को ठंडी भट्टी से निकाला गया तो ब्रांड ने देखा कि उनका मिश्रण चमकता है।
ब्रांड महोदय को सोना बनाने में तो सफलता नहीं मिली, परंतु उन्होंने एक मुलायम, सफेद तथा मोम जैसा पदार्थ प्राप्त कर लिया। डॉ. ब्रांड ने इस चमकीले पदार्थ का नाम फास्फोरस रखा। यूनानी भाषा में इसका अर्थ होता है, ‘मैं प्रकाश का वाहक हूँ’। यह प्रकाश का वाहक नामक तत्त्व कई क्षेत्रों में उपयोगी है; यथा- दियासलाई बनाने में।